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कविता

तुम क्या गए

कुमार शिव


तुम क्या गए
सूर्य कजलाया
पड़ी चाँद में कई दरारें।

टूटे तारों वाली रातें
सौंप गईं अनगिन जगराते
दरवाजे पर इकतारे लेकर
बंजारे दिन आ जाते
अलग-अलग चेहरे वाले
दर्दों की
लगने लगीं कतारें।

गले हुए कागज जैसी संध्या
मुड़ते ही फल जाती है
तेज, हवा, मन की किताब के
सूने पृष्ठ पलट जाती है
चमगादड़ उड़ते
पीले पश्चिमी पर
बँधती वंदनवारें।
 


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